रामपुर गाँव में एक बूढ़ा किसान रहता था, अनूप। वह बहुत मेहनती और ईमानदार था, लेकिन उसके तीनों बेटे, राज, विजय और संजय, आलसी और जिम्मेदारी से दूर भागने वाले थे। अनूप चाहता था कि उसकी मेहनत से जमा की गई संपत्ति का सदुपयोग हो, लेकिन उसे डर था कि उसके बाद उसके बेटे उसे बर्बाद कर देंगे।
एक दिन, अनूप बीमार पड़ गया। उसने अपने बेटों को बिस्तर के पास बुलाया और कमजोर आवाज में कहा, “बेटों, मैंने अपनी पूरी जिंदगी मेहनत करके खेतों में एक खजाना छुपाया है। वह तुम तीनों के लिए है। मेरे जाने के बाद, पूरे खेत की अच्छी तरह खुदाई करना, खजाना मिल जाएगा।”
कुछ दिनों बाद अनूप का निधन हो गया। अंतिम संस्कार के बाद, तीनों भाइयों के मन में सिर्फ एक ही बात थी – खजाना। उन्होंने अगले ही दिन फावड़े और कुदाल लिए और पूरे खेत की खुदाई शुरू कर दी। वे सुबह से शाम तक जमीन खोदते, पसीना बहाते, लेकिन खजाने का नामोनिशान तक नहीं मिला। कई दिनों तक यही सिलसिला चला। खेत का एक-एक इंच जगह खुद गया, मगर सोने के सिक्के की जगह उन्हें सिर्फ पत्थर और कीड़े-मकौड़े ही मिले।
थक-हार कर और निराश होकर तीनों बैठ गए। राज बोला, “पिताजी ने हमसे झूठ क्यों बोला? यहाँ तो कुछ भी नहीं है।”
उसी समय, गाँव का बुजुर्ग और बुद्धिमान सोहनलाल वहाँ से गुजर रहा था। उसने तीनों को उदास देखा और कारण पूछा। उन्होंने पूरी बात बताई। सोहनलाल ने खेत को गौर से देखा, जो अब भुरभुरी और गहरी जुताई के कारण बहुत उपजाऊ लग रहा था। वह मुस्कुराया और बोला, “बेटों, तुम्हारे पिता ने सच में तुम्हें एक अनमोल खजाना दिया है, लेकिन तुम उसे देख नहीं पा रहे। उन्होंने तुमसे खेत खोदने को कहा, है ना? अब देखो, यह खेत तैयार है। क्यों न इसमें अच्छे बीज बो दिए जाएँ?”
निराशा में ही सही, तीनों भाइयों ने सोहनलाल की सलाह मान ली। उन्होंने खेत में गेहूँ के बीज बो दिए। समय बीतता गया, और जिस जमीन को उन्होंने खजाने की तलाश में खोदा था, वह अत्यधिक उपजाऊ हो गई थी। बीजों ने अंकुर फूटे और कुछ ही महीनों में पूरा खेत सुनहरी बालियों से लहलहा उठा।
फसल कटाई का समय आया। तीनों भाइयों ने भरपूर फसल काटी। इतनी अच्छी फसल उन्होंने कभी नहीं देखी थी। जब उन्होंने अनाज बेचा, तो उन्हें बहुत सारा पैसा मिला। उस पल उनकी आँखें खुल गईं।
संजय, सबसे छोटा भाई, खुशी से चिल्लाया, “भाइयो, यही तो वह खजाना है जिसकी बात पिताजी ने की थी! उन्होंने हमें सोने के सिक्के नहीं, बल्कि मेहनत करने और जमीन की कीमत समझने का सबक दिया था।”
उस दिन से, तीनों भाइयों की जिंदगी बदल गई। उन्होंने अपना आलस छोड़ दिया और मेहनत से खेती करने लगे। वे गाँव के सबसे मेहनती किसान बन गए। उन्होंने अपने पिता की विरासत को संभाला और उसे और भी बढ़ाया। वे हमेशा याद रखते थे कि असली खजाना मेहनत, धैर्य और जमीन में छुपा होता है, न कि जमीन के नीचे।
कहानी का सारांश:
इस कहानी का मूल भाव यह है कि आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, जबकि मेहनत ही सफलता की कुंजी है। बूढ़े पिता ने अपने बेटों को सीधे उपदेश देने के बजाय, एक चालाकी से उन्हें मेहनत का महत्व स्वयं अनुभव करवाया। सच्चा खजाना कोई धन-दौलत नहीं, बल्कि मेहनत करने की आदत और किसी काम को करने का कौशल है, जो इंसान को जीवन भर काम आता है।